[ad_1]
उन्होंने कहा कि इस बात पर जोर देना जरूरी है कि विविधता और प्रतिनिधित्व न केवल ऐतिहासिक अन्यायों को सुधारने के लिए बल्कि अदालतों की निर्णय लेने की क्षमता को समृद्ध करने के लिए भी महत्वपूर्ण है.
उन्होंने कहा, ‘‘इसी तरह, अदालतों के भीतर लैंगिक विविधता को एकीकृत करने संबंधी दृष्टिकोण का विस्तार होगा, जिससे अधिक व्यापक और न्यायसंगत निर्णय होंगे.”
प्रावधानों को लैंगिक रूप से समावेशी बनाने की दिशा में प्रगति : CJI
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने अपने प्रावधानों को लैंगिक रूप से समावेशी बनाने की दिशा में प्रगति की है. उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल ‘‘लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने के लिए एक हैंडबुक” जारी की थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायाधीश समावेशी भाषा का इस्तेमाल करें और निर्णय लेने में रूढ़िवादिता के उपयोग से जानबूझकर बचें.
उन्होंने कहा, ‘‘2024 से पहले, उच्चतम न्यायालय के पूरे इतिहास में केवल 12 महिलाओं को ‘सीनियर एडवोकेट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था. हालांकि, हाल में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाली 11 महिलाओं को ‘सीनियर एडवोकेट’ के रूप में नामित किया है.”
चार्ल्सवर्थ आईसीजे में सेवा देने वाली पांचवीं महिला
मंच पर उपस्थित न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्वागत भाषण दिया. कार्यक्रम में शीर्ष अदालत के न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, वरिष्ठ वकील, कानून के छात्र और प्रशिक्षु शामिल हुए.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीश चार्ल्सवर्थ, जो हार्वर्ड लॉ स्कूल के दिनों से उनकी पुरानी दोस्त थीं, अदालत के 77 साल के इतिहास में आईसीजे में सेवा देने वाली पांचवीं महिला थीं.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि 1950 में भारत के उच्चतम न्यायालय की स्थापना, एक ऐसा क्षण था जिसने राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन को चिह्नित किया.
ये भी पढ़ें :
* सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एएम खानविलकर देश के अगले लोकपाल बनेंगे
* प्रौद्योगिकी न्याय के लिए शक्तिशाली माध्यम के रूप में उभरी है: प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़
* जब CJI ने कहा, ये प्लेटफॉर्म नहीं कि किसी भी ट्रेन में चढ़ जाओ
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Source link