
देश में बाघों की मौजूदा आबादी दुनिया के जंगली बाघों की आबादी के 70 फीसदी से भी अधिक है. लेकिन आज भी इस पर खतरा मंडरा रहा है. बाघों के फलने-फूलने के लिए और ज्यादा व लगातार कोशिश करने की जरूरत है. बाघों को बचाना है तो जंगलों और जीव मंडलों को बचाना होगा.
साल 2008 में पहली अपडेटेड गणना में जब बाघों की संख्या 1401 पाई गई, तब NDTV ने बाघों को बचाने का बीड़ा उठाया. चैनल ने ‘सेव ऑर टाइगर मिशन’ नामक एक व्यापक मीडिया अभियान चलाया था. हमने पीएम को हजारों लोगों की हस्ताक्षर वाली एक याचिका भी भेजी.
फिर 2010 में उससे भी बड़ा अभियान शुरू किया गया. 1411 का आंकड़ा एक नारा बन गया. अभिनेता अमिताभ बच्चन भी इस मुहिम का हिस्सा बनें. उनके साथ संरक्षण जगत के नामी चेहरे भी जुड़े. अभियान में संरक्षण में आ रही चुनौतियों और कमियों पर ध्यान दिया गया. ग्राउंड रिपोर्टों ने उजागर किया कि बाघों को बचाने के लिए क्या करने की जरूरत है. विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री से भी अपील की गई.
1 अप्रैल को 1973 में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रोजेक्ट टाइगर को लॉन्च किया था. उद्देश्य ये था कि बाघों को बचाया जा सके. उस वक्त बाघों की संख्या घटकर 268 रह गई थी. जबकि सदी की शुरुआत में भारत में 40.000 से भी ज्यादा बाघ थे.
आंकड़ों को देखें तो साल 1900 में देश में 40,000 हजार टाइगर थे. जबकि 1973 में ये केवल 268 ही बचे. फिर प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई, जिसके बाद साल 2006 में इनकी संख्या 1,411, साल 2010 में 1706, साल 2014 में 2,226 और साल 2018 में 2,967 हो गई.
वहीं, 2014 में आई बीजेपी सरकार के मजबूत संरक्षण प्रबंधन और मजबूत सुरक्षा के फलस्वरूप गुजरात में शेरों की आबादी में 29% की वृद्धि हुई है. साल 2015 में इनकी संख्या 523 थी, जबकि 2020 में इनकी संख्या 674 थी. वहीं, व्यापक रूप से वितरित तेंदुए की आबादी में लगभग 63 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. साल 2014 में इनकी संख्या 7910 थी जो 2018 में 2,967 हो गई. हालांकि, साल 2022 तक इनकी संख्या 3,167 हो गई.
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