News

It Was A Unanimous Decision Not To Mention The Name Of Any Judge In The Ayodhya Decision: CJI Chandrachud – अयोध्या संबंधी फैसले में किसी जज के नाम का जिक्र ना करना सर्वसम्मत निर्णय था : CJI चंद्रचूड़

[ad_1]

नौ नवंबर, 2019 को, एक सदी से भी अधिक समय से चले आ रहे एक विवादास्पद मुद्दे का निपटारा करते हुए तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था और अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का भी निर्णय सुनाया था.

इस संबंध में फैसला सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में फैसले में किसी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख न करने के बारे में खुलकर बात की और कहा कि जब न्यायाधीश एक साथ बैठे, जैसा कि वे किसी घोषणा से पहले करते हैं, तो सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि यह ‘अदालत का फैसला’ होगा.

वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि फैसला लिखने वाले न्यायाधीश का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया. सीजेआई ने कहा, “जब पांच न्यायाधीशों की पीठ फैसले पर विचार-विमर्श करने के लिए बैठी, जैसा कि हम सभी निर्णय सुनाए जाने से पहले करते हैं, तो हम सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि यह अदालत का फैसला होगा. और, इसलिए, फैसले लिखने वाले किसी भी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया गया.”

उन्होंने कहा, ‘इस मामले में संघर्ष का एक लंबा इतिहास है, देश के इतिहास के आधार पर विविध दृष्टिकोण हैं और जो लोग पीठ का हिस्सा थे, उन्होंने फैसला किया कि यह अदालत का फैसला होगा. अदालत एक स्वर में बोलेगी और ऐसा करने के पीछे का विचार यह स्पष्ट संदेश देना था कि हम सभी न केवल अंतिम परिणाम में, बल्कि फैसले में बताए गए कारणों में भी एक साथ हैं.’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं इसके साथ अपना उत्तर समाप्त करूंगा.”

देश को ध्रुवीकृत करने वाले मामले में सर्वसम्मत निर्णय सुनाते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने 2019 में कहा था कि हिंदुओं की इस आस्था को लेकर कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म संबंधित स्थल पर हुआ था, और प्रतीकात्मक रूप से वह संबंधित भूमि के स्वामी हैं.

न्यायालय ने कहा था कि फिर भी, यह भी स्पष्ट है कि हिंदू कारसेवक, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे, उनके द्वारा 16वीं शताब्दी की तीन गुंबद वाली संरचना को ध्वस्त किया जाना गलत था, जिसका ‘समाधान किया जाना चाहिए’.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका आस्था और विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है तथा इसके बजाय मामले को तीन पक्षों – सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा, एक हिंदू समूह और राम लला विराजमान के बीच भूमि पर स्वामित्व विवाद के रूप में लिया.

उच्चतम न्यायालय के 1,045 पन्नों के फैसले का हिंदू नेताओं और समूहों ने व्यापक स्वागत किया था, जबकि मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वह फैसले को स्वीकार करेगा, भले ही यह त्रुटिपूर्ण है.

ये भी पढ़ें- गुजरात ने ‘सूर्य नमस्कार’ का बनाया गिनीज विश्व रिकॉर्ड, PM मोदी ने सराहा

ये भी पढ़ें- गगनयान की तैयारी का साल होगा 2024 : ISRO चीफ एस सोमनाथ

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

[ad_2]

Source link

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *