Year Ender 2023: Brand Modi Becomes Stronger In The Year 2023, Narendra Modi Will Become Prime Minister For The Third Time In 2024! – साल 2023 में और मजबूत हुआ ब्रांड मोदी, 2024 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे नरेंद्र मोदी?
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गौरतलब है भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन और सहयोगी पहले ही 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उत्साह पैदा करने में सफल हो चुके हैं और माहौल बनाने के लिए चुनाव से पहले 1 या 2 राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू की जा सकती है, सत्तारूढ़ दल के लिए मैदान अभी भी अनुकूल बना हुआ है.
तीन हिंदी भाषी राज्यों में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत के बाद, भाजपा के नीति निर्धारक अब इस योजना में व्यस्त हैं कि वह 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटों की अपनी संख्या में कैसे सुधार कर सकते हैं.
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा इन दिनों पिछली बार की 300 के मुकाबले 2024 में 350 के करीब सीट जीतने की संभावना पर बात करना असामान्य नहीं है. इस आशावाद को विपक्षी गठबंधन की तरफ से हवा दी गई है, जो बिना किसी एजेंडे, संयुक्त कार्यक्रम या दृष्टिकोण या नेतृत्व के साथ सामने आया है. विपक्षी पार्टियों ने जुलाई में अपने गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) रखा था.
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी जीत के साथ, भाजपा अब पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी को छोड़कर पूरे उत्तर-पश्चिम भारत पर शासन कर रही है, जो 2014 के लोकसभा चुनावों से उसका अभेद्य किला बना हुआ है. क्षेत्र के 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में लोकसभा की 258 सीटें हैं और भाजपा ने 2019 के चुनावों में लगभग 80 प्रतिशत की जीत दर के साथ इनमें से 200 सीटें जीती थीं.
महाराष्ट्र लोकसभा में 48 सदस्यों को भेजता है और भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. हालांकि पार्टी नेताओं ने विश्वास व्यक्त किया है कि पार्टी उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में 2019 से बेहतर प्रदर्शन करेगी। उसके इस विश्वास के पीछे मुख्य रूप से मोदी की व्यापक स्वीकार्यता, पार्टी की लोकप्रियता और बेजोड़ संगठनात्मक ताकत है.
वर्ष के मध्य में यह प्रतीत हुआ कि कांग्रेस, जो अधिकांश चुनावी राज्यों में भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी थी, ने अंततः अपने केंद्रीकृत अभियान और व्यापक विचार-विमर्श के साथ सत्तारूढ़ पार्टी की ताकत से निपटने का एक तरीका ढूंढ लिया है जिसमें क्षेत्रीय मुद्दे और नेता हमेशा महत्वपूर्ण लेकिन गौण भूमिका निभाते हैं.
यह भाजपा की संगठनात्मक दक्षता के साथ-साथ उसके नेतृत्व के आत्मविश्वास और पारंपरिक परिपाटी से इतर साहसिक कदम उठाने की इच्छा का प्रतिबिंब है जब पार्टी ने दो राज्यों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में स्थिति बदलने में सफल रही जबकि पहले उसके लिए यह कठिन माना जा रहा था।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ कथित सत्ता विरोधी लहर को मंद करने के लिए पार्टी ने विधानसभा चुनावों में केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारने और कठिन सीटों के लिए महीनों पहले उम्मीदवारों के नाम घोषित करने सहित कई कदम उठाए.
भाजपा को उम्मीदों के अनुरूप राजस्थान में जीत मिली. भारी जनादेश के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह के दावों को किनारे कर दिया और नए चेहरों को मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित किया.
भाजपा नेताओं का मानना है कि विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस द्वारा उठाया गया जाति आधारित गणना का मुद्दा भी कुंद हो गया है क्योंकि उसका मुख्य प्रतिद्वंद्वी हिंदी पट्टी में बुरी तरह हार गया है जहां इस मुद्दे का अधिकतम प्रभाव होना चाहिए था. पार्टी नेताओं ने बिहार का संदर्भ देते हुए दावा किया कि यह अब एक राज्य-विशिष्ट मुद्दा बनकर रह गया है, जहां ओबीसी क्षत्रप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव एक प्रमुख ताकत बने हुए हैं.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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